(राग कामोद-तीन ताल)
काञ्चनाद्रि-कमनीय कलेवर कदली-बन राजत अभिराम।
हेम-मुकुञ्ट सिर, भूषण भूषित, अर्ध-निमीलित नेत्र ललाम॥
वरद पाणि वपु, ध्यानमग्र मन, भक्त-कल्पतरु, नित्य निकाम।
राघवेन्द्र-सीता-प्रिय-सेवक मन-मुख सदा जपत सियाराम॥
(राग कामोद-तीन ताल)
काञ्चनाद्रि-कमनीय कलेवर कदली-बन राजत अभिराम।
हेम-मुकुञ्ट सिर, भूषण भूषित, अर्ध-निमीलित नेत्र ललाम॥
वरद पाणि वपु, ध्यानमग्र मन, भक्त-कल्पतरु, नित्य निकाम।
राघवेन्द्र-सीता-प्रिय-सेवक मन-मुख सदा जपत सियाराम॥