काँच निर्मित घरों के क्या कहने!
भुरभुरे पत्थरों के क्या कहने!
झुक गए तानने के मौके पर
उँचे-उँचे सरों के क्या कहने!
जिनके होंठों पे सिर्फ अफ़वाहें,
ऐसे हमलावरों के क्या कहने!
रहज़नी में कमाल हासिल है
रहनुमा रहबरों के क्या कहने!
आदमी है गुलाम सिक्को का
उठती-गिरती दरों के क्या कहने!
बेचकर मुल्क मुस्कुराते हैं,
क़ौम के मसखरों के क्या कहने!