जो हमें जिलाती है
जलाती है वही हमको।
जो इस्पाती ढांचे
जलने से कर देते इंकार
उनको कर देती भुरभुरा
जंग की मार से
ऐसी प्रखर है इसकी धार।
सूर्य-किरणों से अधिक उद्दीपक
ऑक्सीजन से अधिक क्रियाषील
है यह हमारी ही रची हुई
जो हमें भरती हैं
वही हमें आखिर
खोखला करती है।