घर, शहर, दीवार, सन्नाटा
सबने हमें बाँटा
रात, आधी रोशनी षड्यन्त्र
सोई पसलियाँ जनतंत्र
कितना बड़ा काँटा ?
सख़्त हाथों पर धरी आरी
एक आदमख़ोर तैयारी
गर्दन हिली, चाँटा
घर, शहर, दीवार, सन्नाटा
सबने हमें बाँटा
रात, आधी रोशनी षड्यन्त्र
सोई पसलियाँ जनतंत्र
कितना बड़ा काँटा ?
सख़्त हाथों पर धरी आरी
एक आदमख़ोर तैयारी
गर्दन हिली, चाँटा