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कृपानिधान सुजान प्रानपति, सङ्ग बिपिन ह्वै आवोङ्गी |
गृहतें कोटि-गुनित सुख मारग चलत, साथ सचु पावोङ्गी ||
थाके चरनकमल चापौङ्गी, श्रम भए बाउ डोलावोङ्गी |
नयन-चकोरनि मुखमयङ्क-छबि सादर पान करावोङ्गी ||
जौ हठि नाथ राखिहौ मो कहँ, तौ सँग प्रान पठावोङ्गी |
तुलसिदास प्रभु बिनु जीवत रहि क्यों फिरि बदन देखावोङ्गी?||