कैसे? आखिर कैसे?
धकियाऊँ मैं
समय के जड़त्व की
पाषाण-शिलाएँ
अवरुद्ध हैं जिनसे
जीवन का उन्मुक्त प्रवाह?
कैसे? आखिर कैसे
तैरूँ में
ठहरे हुए समय की
नदी के आर-पार?
कैसे?आखिर कैसे?
उगाऊँ में
संवेदनाओं की नई कोंपल
जीवन के सूखे शहतीर से?
कैसे? आखिर कैसे’
करूँ मैं
अमृतपान, जीवन रस का
होठों से काठ के स्तन छुआये?