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कोइलिया / विजेता मुद्‍गलपुरी

देख कोइलिया कू-कू नै कर
हमरा ऊपर जेठ तवै छे, बोलै छें फागुन ऐलै हन
बोलें ते रितुराज कहाँ छै आगिन बरसै छै धरती पर
देख कोइलिया कू-कू नै कर

बाँझिन मौगी को जानै छै परसव के दुख कैसन होवै
हम दुख में छी तों गावै छें की गुजरै छें हमरा ऊपर
देख कोइलिया कू-कू नै कर

बड़ी पतीती तों कोइलिया पर पीड़ा तों नै बूझै छें
तों रस लै छें आम गाछ के हम बैठल पत्थर देहरी पर
देख कोइलिया कू-कू नै कर

सावन ऐलै भादो ऐलै आँसू देलकै मन मुरझैलै
तरसल नैना सेवाती लें, सजन न ऐला विरहिन के घर
देख कोइलिया कू-कू नै कर