खड़ा है
बुजुर्गवार इमली का पेड़
निर्वाक-
पुरनिया-
उद्भिज अस्तित्व की
प्रलम्ब उँचाई
अपनाए,
कलाकार की तरह
कलाकृतियों की जड़ें,
भूगर्भ में
गड़ाए;
जटाजाल का
सिर-छत्र
आकाश में फैलाए।
वनस्पतीय बोध का सम्राट-
विराट की कनिष्ठिका के समान-
त्रिकाल-भोगी-
ध्यानस्थ योगी हुआ।
रचनाकाल: २८-११-१९७८