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ख़ुद अपनी ही प्रतीक्षा में (बंदी समुद्र के बंदी तुम) / वेणु गोपाल

समुद्र हमेशा एक घेरे में होता है

तुम कहते हो
'बिचारा समुद्र बंदी है।'

अपने कमरे का समुद्र
हरेक का केन्द्र होता है।

लोग
उसे देखकर
चिड़ियाघर में देखे
खूंखार शेर की याद करते हैं।

कोई भी
अपने कमरे में
समुद्र को बंदी देखना
नहीं चाहता।
न तुम चाहते हो।

लेकिन
वह
तुम्हारे कमरे में है
इसलिए
कमरे का बंदी है।

लेकिन
वह
तुम्हारे और दुनिया के बीच में है
इसलिए
तुम उसके बंदी हो।

बंदी की इच्छाएँ
और
उसके ख़याल
यहाँ तक
कि वह ख़ुद भी
एक छलांग होता है
--ख़्वाबों के ऎन बीच में।

हर बंदी
एक मुजस्सिम ख़्वाब होता है
आख़िरकार।

रचनाकाल : 12 जनवरी 1979