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ख़ुद से बच के निकल गए होते / ध्रुव गुप्त

ख़ुद से बच के निकल गए होते
अपने दिन भी बदल गए होते

हमको कोई कमी नहीं थी वहां
हम अगर सर के बल गए होते

ख़ुद से कुछ राबता रहा अपना
वरना जड़ से उखड़ गए होते

हम न चलते जो फ़ासले लेकर
सबको आदत सी पड़ गए होते

फिर तेरे दर पे इसलिए न गए
आज भी कल पे टल गए होते

हम भी आवारगी में बच निकले
दुनियादारी में सड़ गए होते

रूह को जाने क्या तलाश रही
दिल कहीं भी बहल गए होते

जाने किस आसमान में है ख़ुदा
हमसे मिलता तो लड़ गए होते