(राग कौशिक कानड़ा-तीन ताल)
खुलता नेत्र तीसरा भीषण उठता विषम रौद्र-रस जाग।
करता दहन दुष्ट दुर्दान्तोंका बरसा प्रलयंकर आग॥
शीतल ज्योति-सुधा-धारासे हरता सब जनके संताप।
मंगल धर्मस्थापन होता, मिटते सारे जगके पाप॥
(राग कौशिक कानड़ा-तीन ताल)
खुलता नेत्र तीसरा भीषण उठता विषम रौद्र-रस जाग।
करता दहन दुष्ट दुर्दान्तोंका बरसा प्रलयंकर आग॥
शीतल ज्योति-सुधा-धारासे हरता सब जनके संताप।
मंगल धर्मस्थापन होता, मिटते सारे जगके पाप॥