गाय और बाछी को
एक ही खूंटे से बांधने में
ख्याल रखा जाता है
कि वे जितनी चाहें
अपने पैरों के नीचे उगी
अनचाही घास को चर सकें
जितनी चाहें एक-दूसरे को
प्यार कर सकें
गाय के थन को
खूंटे से बंधी बाछी
जितना चाहे
अपनी कातर आंखों से निहार सके
और गाय
उमड़ते प्रेम और वात्सल्य में
उसकी बेचारगी पर तरस खा कर
भरपूर उसकी देह को चाट सके
अपनी-अपनी बेचारगी को
आधा-आधा बांट सके...
लेकिन
यह भी ख्याल रखा जाता है
कि गाय का दूध भरा थन
किसी भी हाल में
लार टपकाती बाछी के मुंह से
कम-से-कम
एक इंच दूर रहे