Last modified on 17 फ़रवरी 2017, at 11:31

ग़नीमत है / ब्रजेश कृष्ण

बरसों बाद वहाँ जाते हुए
मुझे डर था कि वहाँ की नदी
खो चुकी होगी अपना सौन्दर्य
लेकिन ग़नीमत है कि
नदी उतनी ही सुन्दर थी और युवा भी

बरसों बाद वहाँ जाते हुए
मुझे डर था कि वह पेड़
खो चुका होगा अपनी छाया
लेकिन ग़नीमत है कि
वहाँ पेड़ था और उसकी छाया भी

बरसों बाद वहाँ जाते हुए
मुझे डर था कि उसकी आँखों में
अब नहीं होगी मेरी कोई पहचान
लेकिन ग़नीमत है कि
वहाँ मेरी पहचान थी और मुझसे मिलने की खु़शी भी

इतने वर्षों बाद
जबकि
यहाँ मैं खो चुका हूँ बहुत कुछ
अगर वहाँ बची है
नदी
पेड़
और उसकी आँखों में खु़शी
तो ग़नीमत है कि
मैंने कुछ नहीं खोया।