(47) (1)
रागगौरी
देखत चित्रकूट-बन मन अति होत हुलास |
सीता-राम-लषन-प्रिय, तापस-बृन्द-निवास ||
सरित सोहावनि पावनि, पापहरनि पय नाम |
सिद्ध-साधु-सुर-सेबित देति सकल मन-काम ||
बिटप-बेलि नव किसलय, कुसुमित सघन सुजाति |
कन्दमूल,जल-थलरुह अगनित अनबन भाँति ||
बञ्जुल मञ्जु, बकुलकुल, सुरतरु, ताल तमाल |
कदलि, कदम्ब, सुचम्पक, पाटल, पनस, रसाल ||
भूरुह भूरि भरे जनु छबि-अनुराग-सभाग |
बन बिलोकि लघु लागहिं बिपुल बिबुध-बन-बाग ||
जाइ न बरनि राम-बन, चितवत चित हरि लेत |
ललित-लता-द्रुम-सङ्कुल मनहु मनोज निकेत ||
सरित-सरनि सरसीरुह फूले नाना रङ्ग |
गुञ्जत मञ्जु मधुपबन, कूजतक बिबिध बिहङ्ग ||
लषन कहेउ रघुनन्दन देखिय बिपिन-समाज |
मानहु चयन मयन-पुर आयौ प्रिय ऋतुराज ||
चित्रकूटपर राउर जानि अधिक अनुरागु |
सखासहित जनु रतिपति आयौ खेलन फागु ||
झिल्लि झाँझ, झरना डफ नव मृदङ्ग निसान |
भेरि उपङ्ग भृङ्ग रव, ताल कीर, कलगान ||
हंस कपोत कबूतर बोलत चक्क चकोर |
गावत मनहु नारिनर मुदित नगर चहुँ ओर ||