गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 36 से 50/पृष्ठ 11
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रागसारङ्ग
आइ रहे जबतें दोउ भाई |
तबतें चित्रकूट-कानन-छबि दिन दिन अधिक अधिक अधिकाई ||
सीता-राम-लषन-पद-अंकित अवनि सोहावनि बरनि न जाई |
मन्दाकिनि मज्जत अवलोकत त्रिबिध पाप, त्रयताप नसाई ||
उकठेउ हरित भए जल-थलरुह, नित नूतन राजीव सुहाई |
फूलत, फलत, पल्लवत, पलुहत बिटप बेलि अभिमत सुखदाई ||
सरित-सरनि सरसीरुह सङ्कुल, सदन सँवारि रमा जनु छाई |
कूजत बिहँग, मञ्जु गुञ्जत अलि जात पथिक जनु लेत बुलाई ||
त्रिबिध समीर, नीर, झर झरननि, जहँ तहँ रहे ऋषि कुटी बनाई |
सीतल सुभग सिलनिपर तापस करत जोग-जप-तप मन लाई ||
भए सब साधु किरात-किरातिनि, राम-दरस मिटि गै कलुषाई |
खग-मृग मुदित एक सँग बिहरत सहज बिषम बड़ बैर बिहाई ||
कामकेलि-बाटिका बिबुध-बन-लघु उपमा कबि कहत लजाई |
सकल-भुवन-सोभा सकेलि मनो राम बिपिन बिधि आनि बसाई ||
बन मिस मुनि, मुनितिय, मुनि-बालक बरनत रघुबर-बिमल-बड़ाई |
पुलक सिथिल तनु, सजल सुलोचनु, प्रमुदित मन जीवन फलु पाई ||
क्यों कहौं चित्रकूट-गिरि, सम्पति-महिमा-मोद-मनोहरहताई |
तुलसी जहँ बसि लषन-रामसिय आनँद-अवधि अवध बिसराई ||