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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 36 से 50/पृष्ठ 3

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बहुत दिन बीते सुधि कछु न लही |
गए जो पथिक गोरे-साँवरे सलोने,
सखि सङ्ग नारि सुकुमारि रही ||

जानि-पहिचानि बिनु आपुतें, आपुने हुतें,
प्रानहुतें प्यारे प्रियतम उपही |
सुधाके, सनेहहूके सार लै सँवारे बिधि,
जैसे भावते हैं भाँति जाति न कही ||

बहुरि बिलोकिबे कबहुक, कहत,
तनु पुलक, नयन जलधार बही |
तुलसी प्रभु सुमिरि ग्रामजुबती सिथिल,
बिनु प्रयास परीं प्रेम सही ||