Last modified on 4 जून 2011, at 17:38

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 50 से 60/पृष्ठ 2

(51)
कौसल्याकी विरह-वेदना

रागसोरठ

आजुको भोर, और सो, माई |
सुनौं न द्वार बेद-बन्दी-धुनि गुनिगन-गिरा सोहाई ||

निज निज सुन्दर पति-सदननितें रुप-सील-छबिछाईं |
लेन असीस सीय आगे करि मोपै सुतबधू न आईं ||

बूझी हौं न बिहँसि मेरे रघुबर कहाँ री! सुमित्रा माता?|
तुलसी मनहु महासुख मेरो देखि न सकेउ बिधाता ||