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कौसल्याकी विरह-वेदना
रागसोरठ
आजुको भोर, और सो, माई |
सुनौं न द्वार बेद-बन्दी-धुनि गुनिगन-गिरा सोहाई ||
निज निज सुन्दर पति-सदननितें रुप-सील-छबिछाईं |
लेन असीस सीय आगे करि मोपै सुतबधू न आईं ||
बूझी हौं न बिहँसि मेरे रघुबर कहाँ री! सुमित्रा माता?|
तुलसी मनहु महासुख मेरो देखि न सकेउ बिधाता ||