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मेरो यह अभिलाषु बिधाता |
कब पुरवै सखि सानुकूल ह्वै हरि सेवक-सुखदाता ||
सीता-सहित कुसल कोसलपुर आवत हैं सुत दोऊ |
श्रवन-सुधा-सम बचन सखी कब आइ कहैगो कोऊ ||
सुनि सन्देस प्रेम-परिपूरन सम्भ्रम उठि धावोङ्गी |
बदन बिलोकि रोकि लोचन-जल हरषि हिये लावोङ्गी ||
जनकसुता कब सासु कहैं मोहि, राम लषन कहैं मैया |
बाहु जोरि कब अजिर चलहिङ्गे स्याम-गौर दोउ भैया ||
तुलसिदास यहि भाँति मनोरथ करत प्रीति अति बाढ़ी |
थकित भई उर आनि राम-छबि मनहु चित्र लिख काढ़ी ||