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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 71 से 80/पृष्ठ 2

(72)

तात! बिचारो धौं, हौं क्यों आवौं |
तुम्ह सुचि, सुहृद, सुजान सकल बिधि, बहुत कहा
कहि कहि समुझावौं ||

निज कर खाल खैञ्चि या तनुतें जौ पितु पग पानही करावौं |
होउँ न उरिन पिता दसरथतें, कैसे ताके बचन मेटि पति पावौं ||

तुलसिदास जाको सुजस तिहूँ पुर, क्यों तेहि
कुलहि कालिमा लावौं |

प्रभु-रुख निरखि निरास भरत भए, जान्यो है सबहि
भाँति बिधि बावौं ||