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अवसि हौं आयसु पाइ रहौङ्गो |
जनमि कैकयी-कोखि कृपानिधि! क्यों कछु चपरि कहौङ्गो ||
भरत भूप, सिय-राम-लषन बन, सुनि सानन्द सहौङ्गो |
पुर-परिजन अवलोकि मातु सब सुख-सन्तोष लहौङ्गो ||
प्रभु जानत, जेहि भाँति अवधिलौं बचन पालि निबहौङ्गो |
आगेकी बिनती तुलसी तब, जब फिरि चरन गहौङ्गो ||