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जबतें चित्रकूटतें आए |
नन्दिग्राम खनि अवनि, डासि कुस, परनकुटी करि छाए ||
अजिन बसन, फल असन, जटा धरे रहत अवधि चित दीन्हें |
प्रभु-पद-प्रेम-नेम-ब्रत निरखत मुनिन्ह नमित मुख कीन्हें ||
सिंहासनपर पूजि पादुका बारहि बार जोहारे |
प्रभु-अनुराग माँगि आयसु पुरजन सब काज सँवारे ||
तुलसी ज्यों-ज्यों घटत तेज तनु, त्यों-त्यों प्रीति अधिकाई |
भए, न हैं, न होहिङ्गे कबहूँ भुवन भरत-से भाई ||