102
सानुज भरत भवन उठि धाए |
पितु-समीप सब समाचार सुनि, मुदित मातु पहँ आए ||
सजल नयन, तनु पुलक, अधर फरकत लखि प्रीति सुहाई |
कौसल्या लिये लाइ हृदय, बलि कहौ, कछु है सुधि पाई ||
सतानन्द उपरोहित अपने तिरहुति-नाथ पठाए |
खेम कुसल रघुबीर-लषनकी ललित पत्रिका ल्याए ||
दलि ताडुका, मारि निसिचर, मख राखि, बिप्र-तिय तारी |
दै बिद्या लै गये जनकपुर, हैं गुरु-सङ्ग सुखारी ||
करि पिनाक-पन, सुता-स्वयम्बर सजि, नृप-कटक बटोर्यो |
राजसभा रघुबर मृनाल ज्यों सम्भु-सरासन तोर्यो ||
यों कहि सिथिल-सनेह बन्धु दोउ, अंब अंक भरि लीन्हें |
बार-बार मुख चूमि, चारु मनि-बसन निछावरि कीन्हें ||
सुनत सुहावनि चाह अवध घर घर आनन्द बधाई |
तुलसिदास रनिवास रहस-बस, सखी सुमङ्गल गाई ||