भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली पद 101 से 110 तक/ पृष्ठ 3
Kavita Kosh से
103
रागकान्हरा
राम-लषन सुधि आई बाजै अवध बधाई |
ललित लगन लिखि पत्रिका,
उपरोहितके कर जनक-जनेस पठाई ||
कन्या भूप बिदेहकी रुपकी अधिकाई,
तासु स्वयम्बर सुनि सब आए
देस देसके नृप चतुरङ्ग बनाई ||
पन पिनाक, पबि मेरु तें गुरुता कठिनाई |
लोकपाल, महिपाल, बान बानैत,
दसानन सके न चाप चढ़ाई ||
तेहि समाज रघुराजके मृगराज जगाई |
भञ्जि सरासन सम्भुको जग जय,
कल कीरति, तिय तियमनि सिय पाई ||
पुर घर घर आनन्द महा सुनि चाह सुहाई |
मातु मुदित मङ्गल सजैं,
कहैं मुनि प्रसाद भये सकल सुमङ्गल, माई ||
गुरु-आयसु मण्डप रच्यो, सब साज सजाई |
तुलसिदास दसरथ बरात सजि,
पूजि गनेसहि चले निसान बजाई ||