092.रागटोड़ी
मुनि-पदरेनु रघुनाथ माथे धरी है |
रामरुख निरखि लषनकी रजाइ पाइ,
धरा धरा-धरनि सुसावधान करी है ||
सुमिरि गनेस-गुर, गौरि-हर भूमिसुर,
सोचत सकोचत सकोची बानि धरी है |
दीनबन्धु, कृपसिन्धु साहसिक, सीलसिन्धु,
सभाको सकोच कुलहूकी लाज परी है ||
पेखि पुरुषारथ, परखि पन, पेम, नेम,
सिय-हियकी बिसेषि बड़ी खरभरी है |
दाहिनोदियो पिनाकु, सहमि भयो मनाकु,
महाब्याल बिकल बिलोकि जनु जरी है ||
सुर हरषत, बरषत फूल बार बार,
सिद्ध-मुनि कहत, सगुन, सुभ घरी है |
राम बाहु-बिटप बिसाल बौण्ड़ी देखियत,
जनक-मनोरथ कलपबेलि फरी है ||
लख्यो न चढ़ावत, न तानत, न तोरत हू,
घोर धुनि सुनि सिवकी समाधि टरी है |
प्रभुके चरित चारु तुलसी सुनत सुख,
एक ही सुलाभ सबहीकी हानि हरी है ||