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गुलाम 2 / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

आपको बतलाऊं मैं इतिहास की शुरुआत को,
और किसलिए बारात दरवाजे पर आई रात को,
और ले गई दुल्हन उठाकर
और मंडप को गिराकर,
एक दुल्हन के लिए आये कई दूल्हे मिलाकर।
और जंग कुछ ऐसा मचाया कि तंग दुनिया हो गई,
और मरने वाले की चिता पर जिंदा औरत सो गई।
और तब बजे घडि़याल,
पड़े शंख-घंटे घनघनाये,
फौजों ने भोंपू बजाये, पुलिस भी तुरही बजाये।
मंत्रोच्चारण यूं हुआ कि मंगल में औरत रचती हो,
जीते जी जलती रहे जिस भी औरत के पति हो।