(राग काफी-ताल मूल)
गौरारुण शुभ वर्ण मुकुट सिर रत्न विराजित।
नील वसन, गल रत्न-कुञ्सुम हारावलि राजित॥
शूल-बाण-धनु-परशु हस्त, भुजबन्ध सुराजित।
कटि काञ्ची, सुच्ञ्णित रणित पग नूपुर भ्राजित॥
तेज-पुंज तन, तीन नेत्र उज्ज्वल सुषमा मय।
हर-प्रिया हिम-गिरि-वासिनी मा गौरी ! जय जय॥