तिमिर में अरुणिम प्रभा का
मिहिर-सा तेरी कृपा का
एक क्षण मुझको वरण है
मैं न आठों यां लूँगा।
शलभ के तिल-तिल जलन की
सुलभ जीवन के व्यजन की
वेदना ही प्रेरणा है
मैं न गुंजित गान लूँगा।
सहन जो ना कर सकूँगा,
वहाँ का क्यों दम भरूँगा
एक कंकड़ ही हैं शंकर
मैं नहीं हिमवान लूँगा।
ईश ने जीवन दिया जब
तपा मैंने वर लिया तब
घर्ष से उत्कर्ष लूँगा
मैं न कोई दान लूँगा!