Last modified on 22 सितम्बर 2023, at 02:06

चल उठा बंदूक साथी / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

चल उठा
बन्दूक साथी जागते रहना।
शान्ति के शुभ
मंत्र बाँचे सो रहा है देश।

रात ने
अपने लिये आँगन सजाया है।
शहर तारों की
चमक सह खिलखिलाया है।
पहरुवे के
पास महकी रातरानी ने,
मैं यहाँ पर हूँ,
कदाचित, दे दिया संदेश।

हर तरफ नीरव,
हवा भी अनमनी-सी है।
ऊँघती सड़कों में,
उत्सव में, ठनी-सी है।
नींद दासी
बन गयी फिलहाल सैनिक की,
टहलती रहती,
नयन ना कर सकी प्रवेश।

जग गये पंछी,
दिशाओं में हुयी हलचल।
रात के
अन्तिम पहर तक पहरुआ निश्चल।
पंचस्नानी कर
विहग दल नीड़ से उड़ता,
अर्चना की
दूब लेकर पूजने विघ्नेश।