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चित्रपट देखत भूली भान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

चित्रपट देखत भूली भान।
कैसौ रूप मनोहर-मंजुल, सुंदरता की खान॥
आँकि सकें सखि ! छबि यह कैसें, कैसें राखों धीर।
कैसें रही तूलिका कर, जब उर उपजी तसबीर॥
सखि! मैं कैसें कहूँ हृदै की, कलित कसक की बात।
छिन आमोद, जरत छिन हिय, अति विषम जरनि दिन-रात॥
चित्र देखि जब भ‌ई दसा यह, भयौ सहज सब त्याग।
निरखूँ नैन चित्रवारे कौं, कब जागैंगे भाग॥
कल नहिं परत एक पल मोकूँ, भ‌ए चित्र-छबि नैन।
दरस-परस की लगी चटपटी, छायौ मन सुचि मैन॥