छोटे-छोटे नाम
नाम के आखर बड़े-बड़े
आदमक़द चेहरे
चौराहों पर आ हुए खड़े !
रंग-ढंग कैसा
कैसी मुस्कानें हरी-भरी
आँख मारती
आँखों बैठी बेपर लालपरी,
और नाक पर बैठे
उठनेवाले हाथ, जुड़े !
डील-डौल ऐसा
अन्धों की आँखें देख फटें
फ़ौलादी टाँगों के बूते
बरसों नहीं हटें,
विज्ञापन हैं निरे
कहें क्या इनसे कौन भिड़े !
16-11-1976