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जबहि रघुपति सँग सीय चली।/ तुलसीदास

(10)

जबहि रघुपति-सँग सीय चली |

बिकल-बियोग लोग-पुरतिय कहैं ,अति अन्याउ, अली ||

कोउ कहै, मनिगन तजत काँच लगि, करत न भूप भली |

कोउ कहै, कुल-कुबेलि कैकेयी दुख-बिष-फलनि फली ||

एक कहैं, बन जोग जानकी बिधि बड़ बिषम बली |

तुलसी कुलिसहुकी कठोरता तेहि दिन दलकि दली ||