नदियों के उफ़ान की तरह मेरे
गालों की छिन नहीं सकोगी लाली ।
तुम-- शिकारी पर हार नहीं मानूंगी मैं
तुम दौड़ हो तो मैं रफ़्तार ।
तुम ज़िन्दा नहीं पकड़ सकोगी मेरी आत्मा-
अपनी दौड़ की पूरी तेज़ी में
अपनी नसें चबाता हुआ
अराबीया का यह लचीला घोड़ा ।
रचनाकाल : 25 दिसम्बर 1924
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह