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जाने कितने पत्थर घर के अन्दर रहते हैं / फूलचन्द गुप्ता

जाने कितने पत्थर घर के अन्दर रहते हैं ।
जाने कितने पत्थर घर के बाहर रहते हैं ।

जाने कैसी होड़ लगी है पत्थर बनने की,
पत्थर के ही घर बनवाकर पत्थर रहते हैं ।

दिल में पत्थर, मुँह में पत्थर, सोचें पत्थर-सा
हाथों में वे कितने पत्थर लेकर रहते हैं ?

इनकी साज़िश हमको-तुमको पत्थर करना है
और इसी से सारे पत्थर मिलकर रहते हैं !

चकमक पत्थर होकर भी तुम सिमटे रहते हो
कीचड़ के ये लिजलिज पत्थर तनकर रहते हैं ।