हासिल करनी है मुझे
- अपनी ही चमड़ी
- और खोई हुई
- ताम्बई सच्चाई।
आज तक
कंधों पर
कितने-कितने
अजनबी मौसमों को
लादे
लिखता रहा हूँ मैं
हर अंधेरे पर
सूरज को निमंत्रण-पत्र तब
जाकर कहीं आया है
अब
यह जेठ का महीना। बहुत-बहुत
गर्मजोशी से
मिलने। मेरे
बेपर्द जिस्म को देने
मेरी ही चमड़ी
और
उस पर लिखने
खोई हुई ताम्बई सच्चाई।
(रचनाकाल : 22.11.1975)