झुलावति स्यामा स्याम-कुमार।
हेम-रत्न-निर्मित झूला पर, रुचिर रेसमी डोरी डार॥
मन अति मुदित झुलावति गोरी, सह न सकति स्रम तन सुकुमार।
सोहत ललित कपोल-भाल पर स्वेद-बिंदु स्रम-जनित अपार॥
कूदि परे लखि स्रमित श्रीमती, झट झूले का कर परिहार।
बैठारी कर-कमल पकरि कै निज कर, उर भरि अतिसय प्यार॥
कोमल कुसुम-कली-मंडित सिंहासन पर, प्रिय अमित उदार।
निज पट-अंचल पौंछे निज कर स्वेद-वारि-कन नंद-कुमार॥
ललितादिक सखियन बैठारे जीवन-धन करि अति मनुहार।
आदरसहित मधुर बानी सौं, करन लगीं सौरभित बयार॥