झूठ-
अब झूठ नहीं;
त्रिपुंड लगाए
सच का अवतार हो गया;
रुद्राक्ष की
माला गले से
लटकाए
भाग्य-विधाता विधायक के
चरण चाँपकर,
दिग्विजय करने में
कामयाब हो गया।
आसमान में बहुत ऊँचे
उठ गया उसका ऐश्वर्य;
उद्दंड हो गया-
उसका मुस्तंड
दमन-चक्र
कि फरार हो गया-
कंकाल हो गया-
आतंकित सत्य।
निश्चय ही बरबाद हो गया देश
इस त्रिशूलधारी झूठ से।
रचनाकाल: १४-०६-१९७९