हवा का
संगीतमय हो जाना
पत्तियों का
चिडियों के साथ
चहचहाना
पेड़ पौधों का
फल-फूल के साथ हर्षाना
नदियों की झर-झर
शाम को समुद्र का
चुप-सा हो जाना
यह सब
आकार देता हुआ लगता है
प्रकृति की बोल को
पर पता नहीं क्यों
पहाड़ हमेशा पीठ किए लगता है
मेरी खुदगर्ज़ का बोल
कहता है
की ताकता है पहाड़
मेरे दुश्मनों को