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तितली / केशव शरण

तितली !
इस ख़ूबसूरत शय ने
मुझे छला है कितनी बार
हथेलियाँ मेरी खरोंचों से भर गई हैं तब

और वह उड़कर
दूसरे फूल पर जा बैठी है