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तीनतसिया / जयराम दरवेशपुरी

हाथ रखऽ न´
माथा पर अब
सोंचइक दिन बीत गेलो
आजादी मिलला तोहरा भी
कत्ते दिना तऽ रीत गेलो

ऊपर से हा रांगल-टांगल
भितरे फुट्टल ढोल हको
झाँप तोप के ढेरो रखला
खुल्ल एकर पोल हको
हिम्मत करके बढ़ल चलऽ
तोहरा पर परतीत हको

गुजरल ढेर दिना तोहर
ई लम्बा चउड़ा भाषण में
तोहर हालत बत्तर भेलो
ई तीनतसिया शासन में
ऊपरे-ऊपरे मीठ बनऽ हो
भीतर हर-हर तीत हको

मुट्ठी भर सैतान के मजमां
खोर-खोर के खइले हो
काला धन सब छुपा रहल हे
देश के गिरवी धइले हो
खेत-खेत में शहर बसइतो
अइसन नयका नीत हको।