त्यागमूर्ति श्रीराधा आयीं जग को त्याग सिखाने आज।
दिव्य प्रेम का मर्म बताने प्रकट हुर्ईं लेकर सब साज॥
कायव्यूह गोपी सब प्रकटीं, प्रकट हुए व्रजपति युवराज।
प्रकटे वन-सुषमा मलयानिल उद्दीपन के सभी समाज॥
रावल ग्राम भूमि, गृह, दिन, नक्षत्र हो गये सब ही धन्य।
मिली परम निधि आज अलौकिक दुर्लभ अद्भुत मधुर अनन्य॥
नहीं रह गया रोग-शोक-भय-तम-भ्रम विषम अविद्या-जन्य।
परानन्द-रवि उदित देख हट गये मोह-माया-पर्जन्य॥
नाचो, गाओ, मोद मनाओ, आज जगत् के सारे लोग।
पाकर दिव्य ‘भाव’ रस का अब मूर्तिमान मंगल-संयोग॥
हटे सभी, मिट जायेंगे सब भव के अमित भयानक रोग।
कर पायेंगे यदि इस मूर्त-युगल में हम निज मन का योग॥
सुन्दरतम सौन्दर्य, मधुरतम शुचि माधुर्य नित्य साकार।
देख-निरख इनको भर लो नेत्रों में , मन में कर सत्कार॥
देखो फिर भीतर-बाहर-सर्वत्र सदा इनको भर प्यार।
करते रहो सदा हर्षित मन राधा-माधव-जय-जयकार॥