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थके हुए समय में / विमलेश त्रिपाठी

रात अपनी बाजुओं में
जकड़ती गयी
थकी हुई देह पर
अँध्ेरा बिछ गया
सन्नाटा सिर पर
सरकता रहा
तारे चेतना में बीतते रहे
शायद एक चिड़िया ने ध्ीरे से
कहा था
कि संकट से पटा समय
दरअसल
संकट में नहीं था
कहीं कोई नहीं हुई थी दुर्घटना
मरा नहीं था कोई
कड़कड़ाती ठंढ से
भूख ने विवश नहीं किया था
किसी बच्चे को
सड़क पर
भीख मांगने के लिए
कुल मिलाकर
रात गाभिन गाय की तरह अलसाई थी
और थके हुए समय में
उसे सचमुच
झपकी आ गयी थी