दर्द की चाशनी है रंगों में
डूब जाने का भय तरंगो में
देखने को शमा तरसती है
मौत के हौंसले पतंगो में
तुम खिलो, हम खिले, सभी खिल जाएँ
बात ऐसी तो हो उमंगो में
गीत, संगीत प्रीत के विपरीत
भक्तजन खो गए है दंगो में
होड़, गठजोड़, तोड़ की बातें
संत दोहरा रहे है सत्संगों में
लुत्फ़ आता नहीं लतीफ़ों में
हम तो उलझे हैं आत्मव्यंगों में