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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 20

दोहा संख्या 191 से 200

रघुपति कीरति कामिनी क्यों कहै तुलसिदासु।
सरद अकास प्रकास ससि चारू चिबुक तिल जासु।191।

प्रभु गुन गन भूषन बसन बिसद बिसेष सुबेस।
राम सुकीरति कामिनी तुलसी करतब केस।192।

राम चरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु।193।

रघुबर कीरति सज्जननि सीतल खलनि सुताति।
ज्यों चकोर चय चक्कवनि तुलसी चाँदनि राति।194।

राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारू।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारू।195।

स्याम सुरभि प्य बिषद अति गुनद करहिं सब पान।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान।196।

हरि हर जस सुर तर गिरहुँ बरनहिं सुकबि समाज।
हाँडी हाटक घटित चरू राँधे स्वाद सुनाज।197।

तिल पर राखेउ सकल जग बिदित बिलोकत लोग।
तुलसी महिमा राम की कौन जानिबे जोग।198।

राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर।
अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह।199।

माया जीव सुभाव गुन काल करम महदादि।
ईस अंक तें बढ़त सब ईस अंक बिनु बादि।200।