एक
हर स्मिति-सरि के लिए अश्रु-सागर बहता है ।
क्षण भर की ही भूल युगों तक उर दहता है ।
एक फूल के आस पास शत-शत कंटक हैं ।
अन्धकार में गुँथें हुए सारे तारक हैं ।
एक एक सुख-रश्मि को,
घेरे अमित विषाद हैं ।
नियम तिमिर ही है सदा,
रवि-शशि सब अपवाद हैं ।
दो
आहत, हतचेतना समीर विष पिए हुए हैं ।
तिमिर क्रूर मुँह दिशा-दिशा का सिए हुए हैं ।
दम घुटने से यहाँ पुण्य होता अर्जित है ।
लेना सुख की साँस पाप कहकर वर्जित है ।
यहाँ रुदन के लिए भी,
केवल मौन उपाधि है ।
नीले अम्बर से ढकी,
धरती एक समाधि है ।