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दो रुपये का आज / देवेन्द्र आर्य

बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज़
सुनो सन्नाटे की आवाज़

बाहर रह कर शामिल होना
शो केसों में ख़्वाब संजोना
कथा-कहानी हुई सोखैती
कविताओं में जादू-टोना

फाँक-फाँक नारंगी हो गयी छिलके-छिलके प्याज
सुनो सन्नाटे की आवाज़

पूँछ में पगहा मुँह पर पैना
खोटी नज़रें नाम सुनयना
गंगा तट पर काशी प्यासी
दिल्ली हो गई भिण्ड-मुरैना

बाबू साहब कमा के चिक्कन मूल से ज़्यादा ब्याज
सुनो सन्नाटे की आवाज़

पानी पर दीवार चलाना
बिन ईंधन के दाल गलाना
कोई सीखे बाज़ारों से
नज़र में रह कर नज़र न आना

बिना पेड़ ,पानी ,चूल्हे के चलता नहीं समाज
सुनो सन्नाटे की आवाज़

अभी समय है अभी बचा लो
सोचो कोई राह निकालो
यह कहना बेमानी होगा
आग लगा कर दूर जमालो

दस रुपये के कल से बेहतर दो रुपये का आज
सुनो सन्नाटे की आवाज़