द्रष्टा
देखा है तुमने
उसको कभी
अवाक्
ताकते हुए
सारे संसार के आर-पार?
या फिर
इतिहास की ढलान पर
फिसल-फिसल
चढ़ते हुए बार-बार
ढोते हुए
सकल भुवन भार?
देखा है तुमने
उसको कभी?
देखा है तुमने
उसको कभी
सुबह-सुबह पीते हुए अन्धकार?