द्वार वृषभानु के आजु भई भीर री।
उमगि चल्यौ रस-निधि छाँडि निज तीर री॥
गोप-गोपि बाल-बृद्ध तजि धन-धाम री।
खिंचे-से आए सब खोय घर-काम री॥
दधि-अच्छत-दूब-हरद-कुमकुम भरि थारि री।
आय जुरे अगनित जन सजि-सजि सिंगार री॥
नाचत सब नारि-नर छाँडि सकल लाज री।
छिरकत दधि-हरद करत आनँद-धुनि गाज री॥
गुनीजन गावत सब नाचत दै ताल री।
आनँद-मद-माते गीत गावत रसाल री॥
भई आज सब की मनभाई सुखद बात री।
नाचि उठे अंग-अंग पुलकित भए गात री॥
आए अज, ईस, इंद्र, बरुन अरु कुबेर री।
लच्छी, सुरसती, सती, सची देवि ढेर री॥
धरि कै ग्वाल-गोपी-तन करत कीर्ति-गान री।
किंनर-गंधर्ब बने गोप भरत तान री॥
जय-जय बृषभानु, जयति भानु-कीर्ति-रानि री।
सबके हित भए आजु परम सुख-दानि री॥
बरसि रह्यौ रस अनूप भूप भानु-द्वार री।
भए सब सब के आनंद-आगार री॥