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नख सिख - 2 / प्रेमघन

मुख मंडल पै कल कुंतल को,
कहि रेसम के सम दूसत हैं।
अलि चौर सिवार औ राहु वृथा,
यमपास मिसाल मसूसत हैं।
कवि भूलैं सबै घन प्रेम सुनो,
सुधा सम्पति को मिलि मूसत हैं।
जनु सारद पूनम के निसि मैं,
जुरि ब्याल सबै ससि चूसत हैं॥