मुख मंडल पै कल कुंतल को,
कहि रेसम के सम दूसत हैं।
अलि चौर सिवार औ राहु वृथा,
यमपास मिसाल मसूसत हैं।
कवि भूलैं सबै घन प्रेम सुनो,
सुधा सम्पति को मिलि मूसत हैं।
जनु सारद पूनम के निसि मैं,
जुरि ब्याल सबै ससि चूसत हैं॥
मुख मंडल पै कल कुंतल को,
कहि रेसम के सम दूसत हैं।
अलि चौर सिवार औ राहु वृथा,
यमपास मिसाल मसूसत हैं।
कवि भूलैं सबै घन प्रेम सुनो,
सुधा सम्पति को मिलि मूसत हैं।
जनु सारद पूनम के निसि मैं,
जुरि ब्याल सबै ससि चूसत हैं॥