पीन पयोधर शम्भु नहीं कल,
काम कमान भ्रुवैं छबि छाजत।
है विपरीत जु नासिका कीर,
लखे अलकावलि जालन भाजत॥
देखिये तो घनप्रेम दोऊ दृग,
आनन पैं कहिबे की न हाजत।
है जहँ पूरन इन्दु प्रकास,
विकास तहीं अरविन्द विराजत॥
पीन पयोधर शम्भु नहीं कल,
काम कमान भ्रुवैं छबि छाजत।
है विपरीत जु नासिका कीर,
लखे अलकावलि जालन भाजत॥
देखिये तो घनप्रेम दोऊ दृग,
आनन पैं कहिबे की न हाजत।
है जहँ पूरन इन्दु प्रकास,
विकास तहीं अरविन्द विराजत॥