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नन्हीं बच्ची की नियति / वाज़दा ख़ान

मैला-कुचैला अधफटा
ब्लाउज़, उठंग लहँगा

ओढ़े तार-तार ओढ़नी
नन्ही बच्ची हाथ में लिए कटोरा
माँगती रोटी के चन्द लुक़्मे
बाल-सुलभता में घुली असहनीय पीड़ा

हुसैन की पेंटिंग नहीं
भूखी है दो रातों से

तक रही हैं निगाहें
उसके अधफटे ब्लाउज़ को
तैर रही हैं होंठों पर उनके
बनैले पशु-सी हिंसक मुस्कान

क्या इस अंग-प्रदर्शन की तुलना होगी
ग्लोबल दुनिया से
उत्पास (शरीर) बेचती नारी से ?
मिस वर्ल्ड, मिस यूनिवर्स के
अंग-प्रदर्शन से ?

कौन सी मजबूरी है उनकी ?
कौन सी भूख है उनकी ?